रबिन्द्रनाथ टैगोर
मेरा मस्तक नत कर अपने
चरण-धूलि के नीचे
चरण-धूलि के नीचे
सारा अहंकार हे, मेरा
डूबो दो आँसुओं में।
अपने गौरव की खातिर
अपना ही अपमान कर
खुद को बाँध
घेर-घेरकर
मारा पल-पल।
सारा अहंकार हे, मेरा
डूबो दो आँसुओं में।
ना अपना गुणगान करूँ
मैं अपने कामों से
अपनी इच्छा करो हे
पूर्ण
मेरे जीवन से।
मुझे दो अपनी परम
शांति
प्राणों में अपनी परम
कांति
मुझे उठाओ छिपा लो
अपने
हृदय-कमल में।
सारा अहंकार हे, मेरा
डूबो दो आँसुओं में।
���������� beautiful lines
ReplyDeleteVery well done Sanjay!!
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